
1 उत्कृष्ट व्यवहार :-
ये जीवन की मुख्य कला का प्रतिपादन करता है | इसके प्रभाव से जीवन को नई दिशा के साथ-साथ सृजन कलाओं में निपुर्णता मिलना शुरू हो जाता है | ये कला हर कोई इंसान दुसरे में चाहकर देखना चाहता है | इसे विकसत किया जा सकता है | इसे निपूर्ण तरीके से उपयोग किया जा सकता है |
2 मुस्कुराहट की कला :-
मुस्कुराता चेहरा हर दुसरे चेहरे को ख़ुशी का अदर्श्य संकेत देता है| इससे सामने वाली की रुची का आभास हो जाता है | मुस्कुराहट हर व्यक्ति की एक फितरत होनी चाहिए | ये एक बहुत ही सस्ता व्यवहार है, जो हर काम को तेजी से करवा सकता है | आज लोग इसके विरुद्ध कई तरीके अपनाते हैं| ये सही रास्ता नहीं है | मुस्कुराहट व्यवहार बनाने की एक उन्नत औषधि है | इसका उपयोग आसानी से किया जा सकता है |
3 उपयुक्त हंसने की कला :-
हंसना एक मानवीय स्वभाव में खुशी का मुख्य प्रतीक है|ये संपूर्ण शरीर को आराम के साथ-साथ ऊर्जावान बनाती है | हंसने की कला बहुत कम व्यक्तियों में होती है | बल्कि लोग तो झूठी हंसी से ही या मुस्कुराहट से ही काम चला लेते हैं | हंसी रोचक तथ्यों पर स्वत ही उत्पन्न होने वाला सेतु है | परंतु हर वक्त हंसते रहना भी, किसी और की हंसी का कारण बन जाता है | इसलिए ये कला इंसान में होनी चाहिए, समय अनुसार और मर्यादाओं का ख्याल रखकर l
4 मधुर वाणी :-
बातें करना हर किसी को स्वाभाविक अच्छा लगता है, और किसी को अच्छा नहीं लगता | परंतु मधुर वाणी हर किसी के मन को भाती है | हर इंसान के कान ये वाणी हर किसी के मुख से सुनना चाहेगें| मधुर वर्णावली को बोलना हर किसी के बस में नहीं होता, परंतु ये कला विकसित की जा सकती है | जिससे जीवन को सृजन करने में आसानी रहती है | मधुर वाणी से संबंधों में दृढ़ता आती है |
5 भावना सर्वोकार :-
भावनाएं हर इंसान में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैl इसे कला के तौर पर देखने पर पता चलता है, कि यह जादुई कला है | किसी दूसरे व्यक्ति के भावो को सहजता से समझा जा सकता है | भावना एक दूसरे व्यक्ति के प्रति अपनी अभिव्यक्ति को दर्शाती हैl ये व्यवहार की निपुणता में सहयोगी स्रोत है l
6 क्रोध निवारक :-
किसी दूसरे व्यक्ति के द्वारा कार्यों में बाधा उत्पन्न करना जो कि स्वभाविक अच्छा नहीं लगता l ये क्रोध का कारण बनता है | और जीवन सृजन कला में क्रोध पर नियंत्रण अति आवश्यक है | इस स्वभाव से कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है |
7 उत्तेजना निवारण:-
उत्तेजना शान्त स्वभाव का काल होती है | जो काम बन रहा हो उत्तेजना तुरंत बिगड़ सकती है | उत्तेजना से ही क्रोध उत्पन्न होता है | इसे मानव स्वभाव में सृजन कला से दूर करना जरूरी है |
8 सच का अनुमोदन:-
हर वक्त सच का अनुमोदन कला, जीवन में सर्जन कला का मुख्य स्तंभ है | इस पर संपूर्ण जीवन निहित होता है | हमेशा सच का अनुमोदन करने से व्यावहारिक जीवन के साथ-साथ स्वभाविक जीवन भी उत्कृष्ट बनता है |
9 समय का औचित्य:-
समय की परख करना हर किसी के बस में नहीं होता है l परंतु वर्तमान में किया गया कार्य ही, भविष्य में आईने के रूप में समुख प्रकट होता हैl समय की वर्तमान कदर ही भविष्य में अपनी कदर का कारण बनती है |
10 अवचेतन मन:-
अवचेतन मन की सृजन कला एक दिव्य शक्ति का काम करती है | ये बाह्य शक्ति में नहीं है | उसका दर्शन अंदरूनी ताकत बढ़ाता है और ये भीतर स्वयं मौजूद होती है | इनका ध्यान करने से ही जागृत होने का स्वरूप निर्धारित है | यह कला इंसान को भीतर से दिव्य प्रकाश की रोशनी के साथ-साथ मजबूती प्रदान करती है |
11 संकल्पों का स्वरूप :-
किसी भी स्वाभाविक कार्य हेतु संकल्प करना आसान होता है | परंतु संकल्प हमेशा अपनी कीमत लेना नहीं छोड़ता, इसे कीमत देना ही होता है | तभी संकल्प की शक्ति जीवन सर्जन कला का हिस्सा बन पाती है |
12 विचारों में स्पष्टीकरण :-
विचार मानव स्वभाव में एक बहती गंगा के समान है | इस गंगा में बहुत से विचारों का समागम एक साथ व अलग-अलग अवस्थाओं में बहता है | अब एक इंसान हर विचार पर तो अपनी प्रतिक्रिया नहीं दे सकता l उसे चाहिए कि वो विचारों का सही चुनाव करें | अपने उपयुक्त ही विचारों का ध्यान करें |
13 कार्यों का स्वरूप :-
जीवन सृजन कला में इसी स्वरूप का मुख्य सहयोग होता है | कार्यों का स्वरूप विचारों से स्पष्टीकरण होने के बाद शुरू होता है | ये स्पष्टीकरण करना विवेकशील बुद्धि का काम होता है | बुद्धि के निर्णय के बाद ही यह कार्यों का स्वरूप लेते हैं |
14 दौलत का समन्वय :-
दौलत हर किए कार्यों का परिणाम स्वरूप भेंट भी है | परंतु दौलत का सृजन कला में कुछ बंदिशों में रखना उचित रहेगा | इसका प्रदर्शन करना या उजागर करना सही नहीं है | मानवीय सृजन कलाओं मे इसका सम्मान है, पर उपयुक्त मर्यादाओं के आधार पर इसका उपयोग होना चाहिए |
15 कर्तव्य का पालन:-
संपूर्ण जीवन कलाओं को सीखने के बाद इसे उपयोग में लेकर आना व्यवहारी, सामाजिक, पारिवारिक, मानवीय संपूर्ण कर्तव्य को निर्वाह करना सृजन कला का मुख्य उद्देश्य है |
16 प्रतिष्ठित जीवन :-
सभी कलाओं का व कर्तव्य का पालन करने के बाद, आखिरी पद व आखिरी कला प्रतिष्ठित जीवन प्राप्त करने की होनी चाहिए | इससे संपूर्ण जीवन सुखमय सफर के रूप में गर्व से याद आता रहता है|