Motivational stories in Hindi | Motivation for Students in Hindi | Hindi Stories

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Motivational stories in Hindi
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Motivational stories in Hindi | Motivation for Students in Hindi | Hindi Stories

Motivational story in Hindi
Motivational story in Hindi

समय एक ऐसा दिव्य बीज है, जो भविष्य में फल के रूप में जरूर फलित होता है | अब वह फल किस स्वरूप में, किस  स्वाद  में मिलता है ये वर्तमान में की गई मेहनत पर निर्भर करेगा| समय के बीज को दो तरह से बोया जाता है, एक ऐसी भूमि जो ना तो वर्तमान में न भविष्य में बड़ा फल देगी। सिर्फ कुछ लालच में इसे बोया जाता है| दूसरी ऐसी भूमि जो वर्तमान तो संघर्ष रूपी है, साथ में वर्तमान फल भी नहीं मिल रहा। परंतु भविष्य में बड़ा वृक्ष जरूर बनेगा | आज हम एक ऐसी ही  Motivational stories in Hindi पेश कर रहें हैं जो संघर्षो के बिच कामयाबी को निखारती हैं >>> 

आइए पढ़ते हैं:- Motivational story 

रमेश गांव छोड़कर अपने माता-पिता के साथ शहर में काम की तलाश में आ जाता है | ये शहर ऐसा है, जिसमें कोई किसी का नहीं है | जिसकी जितनी बड़ी दौड़ है, उतना ही उसे पेट भरने को खाना मिलता है | ऐसी स्थिति में हर कोई सिर्फ वर्तमान कट रहा था। भविष्य की तो सोचना बहुत ही बड़ी बात थी |

अब रमेश काम की तलाश में शहर में दर-दर भटकने लगा। उसे कोई नौकरी नहीं मिल रही थी, ना ही कोई काम देने को तैयार हुआ | ऐसे में रमेश करीब 15 दिनों तक भटकता ही रहा। इधर माता-पिता को भी वह गांव से साथ ले आया था | रमेश के सामने बड़ी चुनौती थी, अपने साथ अपने माता-पिता का भी पोषण करना | रमेश को रातों में नींद आना बंद हो गई। चिंताओं में और काम नहीं मिलने से वह काफी परेशान रहने लगा |

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रमेश हताश होकर बैठा था, कि उसे अपने खुद के काम करने का आइडिया आया | उसने सोचा, क्यों ना मैं खुद का कोई काम शुरू कर लूं |रमेश खाना अच्छा बनाना जानता था | रमेश एक होटल पर जाकर कुछ दिनों तक रसोईये का काम शुरू कर दिया |अब उसे कुछ आय होने लगी । करीब 2 माह बाद उसने अपने घर पर टिफिन देने का काम शुरू कर दिया | Motivational stories in Hindi

रमेश ने शुरू में पांच डिब्बा देना चालू किया | रमेश खाना अच्छा बनाता था। लोगों ने उसके खाने को बड़ा महत्व देना शुरू कर दिया | रमेश दिन में करीब 5 घंटे होटल में काम करता और वहां से जो पैसा मिलता उस पैसों से अपने टिफिन सेंटर को चलाने लगा | करीब 6 माह बाद रमेश को अब नौकरी करने की जरूरत नहीं थी | उसने अपने समय को बढ़ा  दीया और 4 लोगों को साथ लेकर करीब 200 टिफिन हर रोज बेचने लगा | रमेश को पैसा कमाने की गणित समझ आ चुकी थी | रमेश ने अपने निरंतर ग्राहकों को तो खाना देता ही था।अब उसने खाने के पैकेट बनाना शुरू कर दिए। इस काम में फिर चार आदमी रखे। वे लोग रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड आदि जगहों पर खाने के पैकेट पहुंचाने लगे |

रमेश के खाने से धीरे-धीरे उसकी आय के साथ-साथ उसका नाम होने लगा | अब रमेश आत्मनिर्भर बन गया था | अपने साथ 15 लोगों को भी रोजगार दे रहा था | रमेश ने अपना समय नौकरी के कुछ पालो के लालच में ना गवाकर अपने भविष्य को सवारने में लगाया। उसका फल, मीठे के साथ-साथ सेहत पूर्ण भी बन गया |

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