Motivational Story in Hindi | गरीबी को हराकर कैसे बनी IAS | सरोज की कहानी जरुर पढ़े
दोस्तो, हमारे समाज में जिस घर में बेटी होती है, उस घर की तुलना स्वर्ग से की जाती है | परंतु जिस घर में बेटा नहीं हो और बेटियां ही हो उस घर को समाज दयनीय निगाहों से क्यों देखता है? आज आप ऐसी कहानी पढने जा रहें हैं जो एक गरीब और असहाय लड़की को उसकी मेहनत IAS ऑफिसर बना देती हैं | आइए आज एक ऐसी Motivational Story in Hindi की ओर रुख करते हैं>>

श्रीकांत शर्मा जी, एक सरकारी स्कूल में छोटे से पद पर आसीन होकर अपने घर का खर्च चलाते हैं | इनकी शादी को करीब 5 साल हो गए पर कोई संतान नहीं हुई | शर्मा जी काफी डॉक्टर्स व अन्य लोगों से इससे निजात पाने की गुहार लगा चुके थे | काफी कोशिशो के बाद शर्मा जी की घर में एक बेटी का जन्म हुआ | सारा परिवार खुशियां मनाने लगा | शर्मा जी को अब बेटा होने का आशीर्वाद मिलने लगा | समय निकलते देर नहीं लगी एक कन्या ने फिर शर्मा जी के घर आंखें खोली | परन्तु वो खुशी नहीं रही |
अब पांच बेटियां शर्मा जी का घर चहका रही थी | शर्मा जी बेटियों से खुश थे, पर मन में एक लड़के की चाहत ने उन्हें परेशान कर रखा था | पांच बेटियों के बाद शर्मा जी नहीं चाहते थे कि छ बेटी हो | वह चिंतित रहने लगे अब सभी बेटियां स्कूल जाने लगी | बड़ी बेटी अब 16 -17 वर्ष की हो चुकी थी | पिता की व्यथा का कारण समझ सकती थी | एक दिन अपने पिता से कहती है, “पिताजी, मैं जानती हूं कि घर में एक लड़के का होना जरूरी होता है | पर इसमें आपका और हमारा कोई कसूर नहीं है | आप व्यर्थ ही चिंता कर रहे हैं| मैं आपसे वादा करती हूं, कि बेटे की कमी कभी आपको महसूस नहीं होने दूंगी | मैं अपनी मेहनत व लग्न से आपका नाम रोशन जरुर करूंगी |” शर्मा जी ने बेटी को खुशी के आंसूओ से आशीर्वाद दिया | अब बड़ी बेटी सरोज अपने मेहनत के बल पर रात-दिन पढ़ाई करने लगी और उम्र करीब 20 वर्ष हो चुकी थी |
आप पढ़ रहें हैं Motivational Story in Hindi
उसने IAS का एग्जाम क्लियर कर लिया |IAS में सलेक्शन लेकर सरोज ने शर्मा जी का गर्व और हौसला बढ़ा दिया | शर्मा जी ने कभी इतने सम्मान की सपने में भी कल्पना नहीं की थी, जो आज बेटियों ने उन्हें दिया | धीरे-धीरे शर्मा जी की पांचों बेटियां अच्छे व प्रतिष्ठित सरकारी पदों पर आसीन हो गई | शर्मा जी की सारी चिंताओं को इन खुशियों ने निगल लिया |अब शर्मा जी अपनी बेटियों को अपने स्वाभिमान का ताज मानने लगे और प्रसन्न रहने लगे | शर्मा जी ने सरोज से कहा, “बेटा, तुमने साबित कर दिया कि बेटियां कभी बेटों से कम नहीं होती |आज तुम्हारी वह वर्षों पुरानी बात याद आती है तो आंखों में देयनीयता के आंसू आते हैं पर मैं आज बहुत खुश हूं।”
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